Insight Happyness [There is an "i" (eye) in a happiness]
Wednesday, October 1, 2014
Friday, August 1, 2014
Friday, July 11, 2014
योग वशिष्ट
- जो इन्द्रियों बुधि आदि का विषय नहीं उसको क्यों कर पा सकते हैं ?
जो मुमुक्षु है और जिनके वेदके आश्रयसंयुत सात्विकवृति प्राप्त हुई है उनको को गुरु से विध्या प्राप्त हुई है उससे अविध्या जाती रहती है | और आत्मतत्व प्रकाश होता है | जैस साबुन से धोने से मैल उतरता है वैसे ही गुरु और शास्त्र से अविध्या दूर होती है |जब कुछ काल में अविध्या दूर हो जाती है तब अपना आप ही दीखता है |
जब गुरु और शास्त्रों का मिलकर विचार प्राप्त होता है , तब स्वरूप की प्राप्ति होती है द्वैत भ्रम मिट जाता है और आत्मा ही प्रकाशता है |
जैस अंधकार में प्रदार्थ हो और दीपक के प्रकाश से दिखे तो दीपक से नहीं पाया अपने आप से पाया है , तैसे ही गुरु और शास्त्रभी है | यदि दीपक हो और नेत्र न हो तब कैसे पयिगा और नेत्र हो और दीपक न हो तो भी नहीं पाया जाता जब दोनों हो तब प्रदार्थ पाया जाता है, तैसे ही गुरु और शास्त्र है
जो मुमुक्षु है और जिनके वेदके आश्रयसंयुत सात्विकवृति प्राप्त हुई है उनको को गुरु से विध्या प्राप्त हुई है उससे अविध्या जाती रहती है | और आत्मतत्व प्रकाश होता है | जैस साबुन से धोने से मैल उतरता है वैसे ही गुरु और शास्त्र से अविध्या दूर होती है |जब कुछ काल में अविध्या दूर हो जाती है तब अपना आप ही दीखता है |
जब गुरु और शास्त्रों का मिलकर विचार प्राप्त होता है , तब स्वरूप की प्राप्ति होती है द्वैत भ्रम मिट जाता है और आत्मा ही प्रकाशता है |
जैस अंधकार में प्रदार्थ हो और दीपक के प्रकाश से दिखे तो दीपक से नहीं पाया अपने आप से पाया है , तैसे ही गुरु और शास्त्रभी है | यदि दीपक हो और नेत्र न हो तब कैसे पयिगा और नेत्र हो और दीपक न हो तो भी नहीं पाया जाता जब दोनों हो तब प्रदार्थ पाया जाता है, तैसे ही गुरु और शास्त्र है
Yog Vashishtha - देव पूजा विचार
जैसी कामना हो और जो कुछ आरम्भ करो अथवा न करो सो अपने आप से चिन्मात्र संवित तत्व की अर्चना करो इससे यह देव प्रसन्न होता है और जब देव प्रसन्न होता हुआ तब प्रकट होता है | जब उसको पाया और स्थित हुआ तब राग द्वेष आदि शब्दों का अर्थ नहीं पाया जाता |
यदि राज्य अथवा दरिद्र व् सुख दुःख हो उसमे सम रहना ही देव अर्चना करनी है |
वह आत्मा शिव शांति रूप अनाभास है और एक ही प्रकाश रूप है | सम्पुरण जगत प्रतीति मात्र है और आत्मा से भिन्न कुछ दवैत वस्तु आभास नहीं |
वृति का सदा अनुभव में स्थिति रहना और यथा प्राप्त में खेद से रहित विचारना यही उस देव की अर्चना है |
यदि राज्य अथवा दरिद्र व् सुख दुःख हो उसमे सम रहना ही देव अर्चना करनी है |
वह आत्मा शिव शांति रूप अनाभास है और एक ही प्रकाश रूप है | सम्पुरण जगत प्रतीति मात्र है और आत्मा से भिन्न कुछ दवैत वस्तु आभास नहीं |
वृति का सदा अनुभव में स्थिति रहना और यथा प्राप्त में खेद से रहित विचारना यही उस देव की अर्चना है |
Monday, June 23, 2014
Friday, May 30, 2014
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