जैसी कामना हो और जो कुछ आरम्भ करो अथवा न करो सो अपने आप से चिन्मात्र संवित तत्व की अर्चना करो इससे यह देव प्रसन्न होता है और जब देव प्रसन्न होता हुआ तब प्रकट होता है | जब उसको पाया और स्थित हुआ तब राग द्वेष आदि शब्दों का अर्थ नहीं पाया जाता |
यदि राज्य अथवा दरिद्र व् सुख दुःख हो उसमे सम रहना ही देव अर्चना करनी है |
वह आत्मा शिव शांति रूप अनाभास है और एक ही प्रकाश रूप है | सम्पुरण जगत प्रतीति मात्र है और आत्मा से भिन्न कुछ दवैत वस्तु आभास नहीं |
वृति का सदा अनुभव में स्थिति रहना और यथा प्राप्त में खेद से रहित विचारना यही उस देव की अर्चना है |
यदि राज्य अथवा दरिद्र व् सुख दुःख हो उसमे सम रहना ही देव अर्चना करनी है |
वह आत्मा शिव शांति रूप अनाभास है और एक ही प्रकाश रूप है | सम्पुरण जगत प्रतीति मात्र है और आत्मा से भिन्न कुछ दवैत वस्तु आभास नहीं |
वृति का सदा अनुभव में स्थिति रहना और यथा प्राप्त में खेद से रहित विचारना यही उस देव की अर्चना है |
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