1) दुनिया में 4 संस्कृतीयां अती प्राचीन है …मिस्र, युनान, रोम और भारत…मिस्र, युनान और रोम की संस्कृति को तो धर्मांतरण वालों ने कुचल के अजायब घर में रख दिया…अब एक संस्कृति बची है प्राचीन..जीजस के बाद इसायत चली..मोहमद के बाद इस्लाम चला…लेकिन ये संस्कृतियाँ उस से बहुत प्राचीन है..उन में अपना वजूद है..अब इन में से केवल भारतीय संस्कृति प्राचीन बची है..और भारत संस्कृति में 4 वेद है..ये ज्ञान सुन लेना…अपने बच्चे बच्चियों को पड़ोसियों को समझाना..
भारत संकृति में 4 वेद है..इन 4 वेदों में मंत्र, प्रार्थना, उपासना का बहुत सारा खजाना भरा है..मुख्य 1 वेद था, उस के वेदव्यास जी ने 4 विभाग कर के 4 वेद बनाए:ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्व वेद, साम वेद.
उन 4 वेदों के 4 महा मंत्र है..
a)प्रज्ञानम ब्रम्ह : तुम्हारी बुध्दी के गहेराई में जो बैठा है वो परब्रम्ह परमात्मा है…उस परमात्मा का ज्ञान अथवा उस परमात्मा में शांत होना, उस परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए कर्म करना सारे विकासों की कुंजी है..सारे सुखों की कुंजी है..वो सारे ज्ञानों का ज्ञान है..सारे मंगलों का मंगल है.
b) अयं आत्मा ब्रम्ह : दूसरे वेद में आता है की अयं आत्मा ब्रम्ह ..जहाँ से तुम्हारा ‘मैं’ ‘मैं’ उठता है वो ही तुम्हारा आत्मा परमात्मा है..तुम शरीर नही हो, जैसे तुम माई-भाई जो भी कपड़े पहेनते तो तुम कपड़े नही हो ऐसे ही तुम को ये जो स्री का चोला मिला है अथवा पुरुष का चोला मिला है वो यहा मरने के बाद भी तुम रहेते हो..
c) अहं ब्रम्हास्मि : ये बात तीसरे वेद में है..की मैं आत्म ब्रम्ह हूँ.
d) तत्वमसी : ये चौथे वेद का वचन है..जिस सुख को सामर्थ्य को , मुक्ति को, भगवान को तू खोजता है वो तत्व तू ही है; वो तत्व तुझ से अलग नही है..जैसे तरंग पानी को खोजे, उस को समझा दे की तू तरंग नही तू ही मूल में पानी है ..अपने को झाग, बुलबुला, तरंग मानना छोड़ दे तो तुम स्वयं समुद्र है ऐसे ही अपने को शरीर, मन, इंद्रिया, फलाना जातीवाला मानना छोड़ दे तो मूल में जो सर्व व्यापक परमात्मा है वो ही तेरा आत्मा है..
भारत संकृति में 4 वेद है..इन 4 वेदों में मंत्र, प्रार्थना, उपासना का बहुत सारा खजाना भरा है..मुख्य 1 वेद था, उस के वेदव्यास जी ने 4 विभाग कर के 4 वेद बनाए:ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्व वेद, साम वेद.
उन 4 वेदों के 4 महा मंत्र है..
a)प्रज्ञानम ब्रम्ह : तुम्हारी बुध्दी के गहेराई में जो बैठा है वो परब्रम्ह परमात्मा है…उस परमात्मा का ज्ञान अथवा उस परमात्मा में शांत होना, उस परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए कर्म करना सारे विकासों की कुंजी है..सारे सुखों की कुंजी है..वो सारे ज्ञानों का ज्ञान है..सारे मंगलों का मंगल है.
b) अयं आत्मा ब्रम्ह : दूसरे वेद में आता है की अयं आत्मा ब्रम्ह ..जहाँ से तुम्हारा ‘मैं’ ‘मैं’ उठता है वो ही तुम्हारा आत्मा परमात्मा है..तुम शरीर नही हो, जैसे तुम माई-भाई जो भी कपड़े पहेनते तो तुम कपड़े नही हो ऐसे ही तुम को ये जो स्री का चोला मिला है अथवा पुरुष का चोला मिला है वो यहा मरने के बाद भी तुम रहेते हो..
c) अहं ब्रम्हास्मि : ये बात तीसरे वेद में है..की मैं आत्म ब्रम्ह हूँ.
d) तत्वमसी : ये चौथे वेद का वचन है..जिस सुख को सामर्थ्य को , मुक्ति को, भगवान को तू खोजता है वो तत्व तू ही है; वो तत्व तुझ से अलग नही है..जैसे तरंग पानी को खोजे, उस को समझा दे की तू तरंग नही तू ही मूल में पानी है ..अपने को झाग, बुलबुला, तरंग मानना छोड़ दे तो तुम स्वयं समुद्र है ऐसे ही अपने को शरीर, मन, इंद्रिया, फलाना जातीवाला मानना छोड़ दे तो मूल में जो सर्व व्यापक परमात्मा है वो ही तेरा आत्मा है..
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