Saturday, May 25, 2013

गुणों की व्याख्या

  • गुणों का स्वरुप 
          सत्व गुण सुख स्वरुप है , रजो गुण दुःख स्वरुप है और तमो गुण मोह स्वरुप है ।
  • गुणों की सामर्थ्य 
          सत्व गुण प्रकाश करने में समर्थ है ,रजस प्रवत्त करने में और तमस रोकने में । 
  • गुणों का काम 
          गुण एक दुसरे को दबातें हैं । जब सत्व गुण प्रधान होता है तब रजस और तमस को दबाकर सुख प्रकाश आदि अपने धर्मो से शांत  वृति उत्पन्न करता है । जब रजस प्रधान होता है तब सत्व और तमस  को दबाकर दुःख प्रव्रत्ति  आदि से घोर वृति को उत्पन्न करता है । इसी प्रकार तमस प्रधान हो कर सत्व और रजस को दबाकर आलस्य - सुस्ती आदि से मोह वृति को उत्पन्न करता है । 
         ये तीनो  गुण एक दुसरे के आश्रय है । तीनो गुण एक दुसरे को प्रकट करते हैं । एक गुण अन्य दो के साथ रहता है ; कभी अलग नहीं होता ; सब एक दुसरे के जोड़े है । 
        सत्व हल्का और प्रकाशक माना गया है ; रजस उत्तेजक और चल ; और तमस भरी और रोकनेवाला है । दीपक के सद्र्श ( एक) उद्देश्य से इनका काम है ।
   
  • गुणों  का धर्म 
        सत्व हल्का और प्रकाशक है , इसलिए ये सत्व प्रधान पदार्थ हलके होतें है । सत्व और तमस स्वयम अक्रिय है , इसलिए अपना अपना काम करने में असमर्थ है । रजस क्रियावाला होने से उनको उतेजना देता है और अपने अपने काम में परवर्त करता है । सत्व हल्का है , तमस भारी है । तमस स्थिर करता है , रजस उत्तेजित करता है । इस प्रकार तीनो गुण परस्पर विरोधी है , किन्तु दीपक के सद्र्श इनकी प्रवृति एक ही प्रयोजन से है ।  प्रत्येक प्रदार्थ में तीनो गुण पाए जातें है 
  • गुणों का परिणाम

दर्शनों के चार प्रतिपाध विषयों पर सांख्य के मुख्य सिद्धांत



१.  हेय
दुःख का वास्तविक स्वरुप क्या है ।
त्याज्य जो दुःख है , वह तीन प्रकार की चोट पहुंचाता रहता है 
  • आधातामिक  आर्थात अपने अन्दर से शारीरिक चोट, जैसे ज्वर आदि या मानशिक चोट, जैसे राग द्वेष आदि की वेदना 
  • आधि भौतिक आर्थात किसी अन्य प्राणी द्वारा पीड़ा पहुँचाना 
  • आधी दैविक आर्थात किसी दिव्य शक्ति, जैसे बिजली आदि से पीड़ा पहुचना 
२. हेय हेतु -
 दुःख कहाँ से उत्पन्न हॊता है , इसका वास्तविक कारन क्या है
इस दुःख की जड़ अज्ञान अविध्या , अविवेक है । जितना अज्ञान दूर होता जाता है , उतना ही दुःख का अभाव होता जाता है ।

३. हान  -
दुःख का नितांत आभाव क्या है  अर्थात हान किस अवस्था का नाम है ।
दुःख का नितान्त आभाव अज्ञान आर्थात अविध्या का सर्वथा नाश हो जाना है । उपनिषदों का भी यही सिधान्त है । अविध्या की निवर्ति ही परमात्मा की प्राप्ति है । इससे भिन कोई भी अन्य वास्तु नहीं है ।

४.  हानोपाय -
 नितांत दुःख निवृति का साधन क्या है
सारे तत्वों का विवेक पूर्ण ज्ञान होने से सारे दुखों की निवृति हो जाती है  ।