Saturday, May 25, 2013

दर्शनों के चार प्रतिपाध विषयों पर सांख्य के मुख्य सिद्धांत



१.  हेय
दुःख का वास्तविक स्वरुप क्या है ।
त्याज्य जो दुःख है , वह तीन प्रकार की चोट पहुंचाता रहता है 
  • आधातामिक  आर्थात अपने अन्दर से शारीरिक चोट, जैसे ज्वर आदि या मानशिक चोट, जैसे राग द्वेष आदि की वेदना 
  • आधि भौतिक आर्थात किसी अन्य प्राणी द्वारा पीड़ा पहुँचाना 
  • आधी दैविक आर्थात किसी दिव्य शक्ति, जैसे बिजली आदि से पीड़ा पहुचना 
२. हेय हेतु -
 दुःख कहाँ से उत्पन्न हॊता है , इसका वास्तविक कारन क्या है
इस दुःख की जड़ अज्ञान अविध्या , अविवेक है । जितना अज्ञान दूर होता जाता है , उतना ही दुःख का अभाव होता जाता है ।

३. हान  -
दुःख का नितांत आभाव क्या है  अर्थात हान किस अवस्था का नाम है ।
दुःख का नितान्त आभाव अज्ञान आर्थात अविध्या का सर्वथा नाश हो जाना है । उपनिषदों का भी यही सिधान्त है । अविध्या की निवर्ति ही परमात्मा की प्राप्ति है । इससे भिन कोई भी अन्य वास्तु नहीं है ।

४.  हानोपाय -
 नितांत दुःख निवृति का साधन क्या है
सारे तत्वों का विवेक पूर्ण ज्ञान होने से सारे दुखों की निवृति हो जाती है  ।

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