Sunday, May 26, 2013
Saturday, May 25, 2013
गुणों की व्याख्या
- गुणों का स्वरुप
- गुणों की सामर्थ्य
- गुणों का काम
ये तीनो गुण एक दुसरे के आश्रय है । तीनो गुण एक दुसरे को प्रकट करते हैं । एक गुण अन्य दो के साथ रहता है ; कभी अलग नहीं होता ; सब एक दुसरे के जोड़े है ।
सत्व हल्का और प्रकाशक माना गया है ; रजस उत्तेजक और चल ; और तमस भरी और रोकनेवाला है । दीपक के सद्र्श ( एक) उद्देश्य से इनका काम है ।
- गुणों का धर्म
- गुणों का परिणाम
दर्शनों के चार प्रतिपाध विषयों पर सांख्य के मुख्य सिद्धांत
१. हेय
दुःख का वास्तविक स्वरुप क्या है ।
त्याज्य जो दुःख है , वह तीन प्रकार की चोट पहुंचाता रहता है
- आधातामिक आर्थात अपने अन्दर से शारीरिक चोट, जैसे ज्वर आदि या मानशिक चोट, जैसे राग द्वेष आदि की वेदना
- आधि भौतिक आर्थात किसी अन्य प्राणी द्वारा पीड़ा पहुँचाना
- आधी दैविक आर्थात किसी दिव्य शक्ति, जैसे बिजली आदि से पीड़ा पहुचना
दुःख कहाँ से उत्पन्न हॊता है , इसका वास्तविक कारन क्या है
इस दुःख की जड़ अज्ञान अविध्या , अविवेक है । जितना अज्ञान दूर होता जाता है , उतना ही दुःख का अभाव होता जाता है ।
३. हान -
दुःख का नितांत आभाव क्या है अर्थात हान किस अवस्था का नाम है ।
दुःख का नितान्त आभाव अज्ञान आर्थात अविध्या का सर्वथा नाश हो जाना है । उपनिषदों का भी यही सिधान्त है । अविध्या की निवर्ति ही परमात्मा की प्राप्ति है । इससे भिन कोई भी अन्य वास्तु नहीं है ।
४. हानोपाय -
नितांत दुःख निवृति का साधन क्या है
सारे तत्वों का विवेक पूर्ण ज्ञान होने से सारे दुखों की निवृति हो जाती है ।
Sunday, May 19, 2013
Excellent Pranayama Explanation from Himalayan Yoga Swami
Excellent Pranayama Explanation from Himalayan Yoga Swami
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