- जो इन्द्रियों बुधि आदि का विषय नहीं उसको क्यों कर पा सकते हैं ?
जो मुमुक्षु है और जिनके वेदके आश्रयसंयुत सात्विकवृति प्राप्त हुई है उनको को गुरु से विध्या प्राप्त हुई है उससे अविध्या जाती रहती है | और आत्मतत्व प्रकाश होता है | जैस साबुन से धोने से मैल उतरता है वैसे ही गुरु और शास्त्र से अविध्या दूर होती है |जब कुछ काल में अविध्या दूर हो जाती है तब अपना आप ही दीखता है |
जब गुरु और शास्त्रों का मिलकर विचार प्राप्त होता है , तब स्वरूप की प्राप्ति होती है द्वैत भ्रम मिट जाता है और आत्मा ही प्रकाशता है |
जैस अंधकार में प्रदार्थ हो और दीपक के प्रकाश से दिखे तो दीपक से नहीं पाया अपने आप से पाया है , तैसे ही गुरु और शास्त्रभी है | यदि दीपक हो और नेत्र न हो तब कैसे पयिगा और नेत्र हो और दीपक न हो तो भी नहीं पाया जाता जब दोनों हो तब प्रदार्थ पाया जाता है, तैसे ही गुरु और शास्त्र है
जो मुमुक्षु है और जिनके वेदके आश्रयसंयुत सात्विकवृति प्राप्त हुई है उनको को गुरु से विध्या प्राप्त हुई है उससे अविध्या जाती रहती है | और आत्मतत्व प्रकाश होता है | जैस साबुन से धोने से मैल उतरता है वैसे ही गुरु और शास्त्र से अविध्या दूर होती है |जब कुछ काल में अविध्या दूर हो जाती है तब अपना आप ही दीखता है |
जब गुरु और शास्त्रों का मिलकर विचार प्राप्त होता है , तब स्वरूप की प्राप्ति होती है द्वैत भ्रम मिट जाता है और आत्मा ही प्रकाशता है |
जैस अंधकार में प्रदार्थ हो और दीपक के प्रकाश से दिखे तो दीपक से नहीं पाया अपने आप से पाया है , तैसे ही गुरु और शास्त्रभी है | यदि दीपक हो और नेत्र न हो तब कैसे पयिगा और नेत्र हो और दीपक न हो तो भी नहीं पाया जाता जब दोनों हो तब प्रदार्थ पाया जाता है, तैसे ही गुरु और शास्त्र है